आजकल सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म हर स्मार्टफोन में आने लगे है आधुनिकता के बढते दौर में हर बच्चे बच्चे के पास भी स्मार्टफोन रहने लगा है अब सवाल है की सोशल मीडिया क्या है ? यदि सोशल मीडिया ना होता तो एक आम व्यक्ति की जिन्दगी पर क्या असर पडता ? सोशल मीडिया पर किस तरह व्यक्ति काम कर रहा है ? उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या है ? और सोशल मीडिया ने हमें क्या दिया ?
सोशल मीडिया ने आज एक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है , आज प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी डर के सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रख सकता है और उसे हज़ारों लोगों तक पहुँचा सकता है , परंतु सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित कर दिया है तथा इसके विनियमन की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है । अतः आवश्यक है कि निजता के अधिकार का उल्लंघन किये बिना सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श कर नए विकल्पों की खोज की जाए, ताकि भविष्य में इसके संभावित दुष्प्रभावों से बचा जा सके ।
आज तेजी से दौड़ती भागती जिंदगी में हर व्यक्ति की एक अति महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है मोबाइल । बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी अब मोबाइल के दीवाने हो चुके है , यद्यपि इसमें कोई बुराई नहीं है । लेकिन आज के बच्चों का मोबाइल और सोशल साइट्स के प्रति बढ़ता आकर्षण चिंता का विषय है । हालाँकि देखा जाये तो मोबाइल ने बच्चों को तेजी से बदलते परिवेश से सामंजस्य बनाये रखने में बहुत सहायता की है , पर बच्चों का इसके प्रति बढ़ती संलिप्तता चिंताजनक है । बच्चों के लिए सोशल मीडिया जहाँ एक सकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है वही दूसरी तरफ कुछ बच्चे इसका दुरुपयोग कर गलत रास्ते भी अपना रहे है ।
आज के बच्चे उम्र से पहले ही परिपक़्व हो जा रहे है उसका एक अहम हिस्सा सोशल मीडिया है । आजकल बच्चे सोशल साइट्स पर प्रसिद्धि पाने के लिए , अधिक से अधिक लाइक्स और कमेंट पाने के लिए तरह तरह के फोटो और अन्य चीजे पोस्ट करते है , जो कभी कभी तो आपत्ति जनक भी होती है और तो और अलग तरीके से फोटो खींचने के चक्कर में जान तक गवां देते है । सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हमेशा ऑनलाइन रहने से बच्चों के कोमल मन पर एक अनावश्यक दबाव सदा ही बना रहता है । वर्तमान स्तिथि ये है कि घंटो ऑनलाइन रहने और गैरजरूरी साइट्स देखते रहने के कारण उनकी आँखे और सर दोनों दर्द करते है । पहले स्कूलों में खेल कूद पर पूरा ध्यान होता था पर अब बच्चों पर कोर्स पूरा करने का इतना दबाव रहता है की खेलों के प्रति उनका कोई आकर्षण ही नहीं होता । बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम स्कूलों में भी नहीं होता है । स्कूल के बाद घर के कमरों तक ही उनका जीवन सीमित हो जाता है और फिर वे मोबाइल में ही खोये रहते है । इस हद तक वे डूब जाते है कि परिवार और समाज से अलग एकाकी जीवन जीने लगते है , जो किसी भी परिस्थति में उनके सर्वागीण विकास के लिए ठीक नहीं है । वे अपने माँ बाप और परिवार से दूर होते जाते है । परिवार का आपसी सामंजस्य समाप्त होता जा रहा है । उनका ऐसा व्यवहार उनके व्यक्तित्व , सोच ,आचार विचार और भविष्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है । कभी कभी तो इसके तनाव के कारण वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते है और उनका ध्यान पढाई से पूरी तरह भटक जाता है ।
यद्यपि इस बात की सत्यता से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज के समय में सोशल मीडिया के आने से संचार के क्षेत्र में एक नयी क्रांति आयी है । बच्चों और बड़ों को भी अपना ज्ञान और जानकारी बढ़ाने , अपनी प्रतिभा दिखाने , रचनात्मकता बढ़ाने का बढ़िया मौका मिल रहा है लेकिन इसके बावजूद सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक है । अधिक देर तक मोबाइल देखना और सुनना आँख और कान दोनों के लिए नुकसानदायक होता है । इसीलिए सोशल मीडिया का प्रयोग बच्चों को सीमित मात्रा में और जरुरत भर ही करना चाहिए । जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही मोबाइल और सोशल नेटवर्क्स के भी दो पहलू है , एक सकारात्मक है तो दूसरा नकारात्मक । यदि इसका इस्तेमाल सोच समझकर सही दिशा में किया जाये बच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी लाभदायक होता है ।
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के 3.96 बिलियन से अधिक लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते है । आज पूरी दुनिया का 70 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा सोशल मीडिया पर व्यस्त है और यह संख्या बढ़ती चली जा रही है एक सर्वेक्षण के अनुसार हाई स्कूल के 72 प्रतिशत और कॉलेज के लगभग 80 प्रतिशत छात्र सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं । सोशल मीडिया वेबसाइटों के अति प्रयोग से छात्रों के व्यक्तिगत और शैक्षणिक जीवन दोनो को ही नुकसान हो रहा है ।
सोशल मीडिया एक अपरंपरागत मीडिया है । यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिससे इंटरनेट के माध्यम से पहुंच बना सकते हैं । सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है , जो कि सारे संसार को जोड़े रखता है । यह संचार का एक बहुत अच्छा माध्यम है । यह द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में काम आता है सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है जिससे किसी भी देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है ।
2014 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने जमकर सोशल मीडिया का उपयोग कर आमजन को चुनाव के जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी । इस आम चुनाव में सोशल मीडिया के उपयोग से वोटिंग प्रतिशत बढ़ा, साथ ही साथ युवाओं में चुनाव के प्रति जागरूकता बढ़ी । सोशल मीडिया के माध्यम से ही 'निर्भया' को न्याय दिलाने के लिए विशाल संख्या में युवा सड़कों पर आ गए जिससे सरकार दबाव में आकर एक नया एवं ज्यादा प्रभावशाली कानून बनाने पर मजबूर हो गई । लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जहां व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है । आज फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है । वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई है जिनमें फेसबुक, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं ।
सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग कर कुछ लोग दुर्भावनाएं फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं । सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है जिससे कि जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल करने पर सख्त हो जाती है ।
सोशल मीडिया साइबर-बुलिंग को बढ़ावा देता है । यह फेक न्यूज़ और हेट स्पीच फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । सोशल मीडिया पर गोपनीयता की कमी होती है और कई बार आपका निजी डेटा चोरी होने का खतरा रहता है । साइबर अपराधों जैसे- हैकिंग और फिशिंग आदि का खतरा भी बढ़ जाता है ।
आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से धोखाधड़ी का चलन भी काफी बढ़ गया है, ये लोग ऐसे सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ता की तलाश करते हैं जिन्हें आसानी से फँसाया जा सकता है । सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है । सोशल मीडिया ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने और खुलकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है । आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत में तकरीबन 350 मिलियन सोशल मीडिया यूज़र हैं और अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुँच जाएगी । वर्ष 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय उपयोगकर्त्ता औसतन 2.4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं । इसी रिपोर्ट के मुताबिक फिलीपींस के उपयोगकर्त्ता सोशल मीडिया का सबसे अधिक (औसतन 4 घंटे) प्रयोग करते हैं, जबकि इस आधार पर जापान में सबसे कम (45 मिनट) सोशल मीडिया का प्रयोग होता है ।
इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया अपनी आलोचनाओं के कारण भी चर्चा में रहता है दरअसल, सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है । भारत में नीति निर्माताओं के समक्ष सोशल मीडिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है एवं लोगों द्वारा इस ओर गंभीरता से विचार भी किया जा रहा है । सोशल मीडिया का दुरुपयोग
आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई साइटों पर 3,245 आपत्तिजनक सामग्रियों के मिलने की शिकायत की गई थी जिनमें से जून 2019 तक 2,662 सामग्रियाँ हटा दी गईं थी । उल्लेखनीय है कि इनमें ज़्यादातर वह सामग्री थी जो धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का निषेध करने वाले कानूनों का उल्लंघन कर रही थी । दूसरी ओर सोशल मीडिया के ज़रिये ऐतिहासिक तथ्यों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है । न केवल ऐतिहासिक घटनाओं को अलग रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है बल्कि आज़ादी के सूत्रधार रहे नेताओं के बारे में भी गलत जानकारी बड़े स्तर पर साझा की जा रही है ।
विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचनाओं का प्रसार कुछ प्रमुख उभरते जोखिमों में से एक है । यकीनन यह न केवल देश की प्रगति में रुकावट है, बल्कि भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकते हैं । आवश्यक है कि देश की सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करते हुए इसे पूरी तरह रोकने का प्रयास करना चाहिये ।
सोशल मीडिया के लिये कानून : भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2008 के दायरे में आते हैं । यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अदालत या कानून प्रवर्तन संस्थाओं द्वारा किसी सामग्री को हटाने का आदेश दिया जाता है तो उन्हें अनिवार्य रूप से ऐसा करना होगा ।
● सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्टिंग तंत्र भी मौजूद हैं, जो यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या कोई सामग्री सामुदायिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रही है या नहीं और यदि वह ऐसा करते हुए पाई जाती है तो उसे प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाता है ।
भारत में फेक न्यूज़ को रोकने के लिये कोई विशेष कानून नहीं है । परंतु भारत में अनेक संस्थाएँ हैं जो इस संदर्भ में कार्य कर रही हैं जैसे
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीआईबी) : एक ऐसी ही नियामक संस्था है जो समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और उनके संपादकों को उस स्थिति में चेतावनी दे सकती है यदि यह पाया जाता है कि उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है ।
न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन : जो निजी टेलीविजन समाचार और करेंट अफेयर्स के प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है एवं उनके विरुद्ध शिकायतों की जाँच करता है ।
ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल : जो टीवी ब्रॉडकास्टरों के खिलाफ आपत्तिजनक टीवी कंटेंट और फर्ज़ी खबरों की शिकायत स्वीकार करती है और उनकी जाँच करती है ।
सकारत्मक प्रभाव :
शिक्षा: सोशल मीडिया साइटों का उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। सोशल मीडिया मंच का उपयोग सूचना और ज्ञान साझा करने के लिए किया जा सकता है। सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी कम समय मे अधिक लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।
व्यापार: व्यापार के नजरिये से सोशल मीडिया वर्तमान समय मे एक वरदान साबित हुआ है। वेबसाइट , ब्लॉग या सोशल ग्रुप बना कर आप अपने सभी संभावित ग्राहकों को आसानी से लक्षित कर सकते हैं। पारंपरिक तरीकों के मुकाबले सोशल मीडिया अभी प्रभावशाली और सस्ता माध्यम है।
नयी सोच: सोशल मीडिया एक मंच प्रदान करता है जिसके द्वारा हम अपनी भावनाओं, विचारों और सुझावों को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत कर सकते है। सोशल मीडिया हमे यह मौका देता है की हम अपनी बात नए तरीके से प्रस्तुत कर सके। चित्र, इन्फोग्राफिक्स या वीडियो जैसे आकर्षक तरीके अपना कर विचार प्रस्तुत किये जा सकते है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अपने विचार, सुझाव या भावना व्यक्त करना अभिव्यक्ति कहलाती है। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। सोशल मीडिया पर हमारी अभिव्यक्ति पर हमे प्रतिक्रिया भी हमे तुरंत मिल जाती है। सकारत्मक प्रतक्रिया से हम प्रोत्साहित होते है। कहीं हमारी जानकारी गलत है तो उसपर भी तुरंत सुधार संभव है।
जागरूकता: सोशल मीडिया के माध्यम से किसी विचार या मुद्दे पर जागरूकता पैदा करना आसान हो गया है। एक एप्लीकेशन के द्वारा पूरी दुनिया से संपर्क आसानी से हो जाता है। किसी भी विषय पर जागरूकता फैलना इतना सरल कभी नहीं था।
नकारात्मक प्रभाव :
छात्र के जीवन पर सोशल मीडिया द्वारा नकारात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं। यदि हम बिना सूझ बूझ के इन प्लेटफार्मों को अत्यधिक उपयोग करते हैं तो निश्चित रूप से परिणाम नकारत्मक होंगे।
बेवकूफी: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का का उपयोग समझदारी से करना जरुरी है। कुछ भी पोस्ट करने से पहले इस बात का ज्ञान होना जरुरी है की यह सामाग्री पोस्ट करने योग्य है भी या नहीं। युवा पीढ़ी अपरिपक्वता के चलते खुद को स्मार्ट दिखाने का प्रयास करते है। किन्तु कई बार उनके द्वारा पोस्ट की गयी सामग्री से वे बेवकूफ साबित होते है।
व्याकुलता: व्याकुलता छात्र के जीवन पर सोशल मीडिया के सबसे नकारात्मक प्रभावों में से एक है। अपना अधिक समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिताने वाले छात्र पोस्ट, शेयर और लाइक को लेकर अत्यधिक व्याकुल नजर आते है। इस प्रकार की व्याकुलता छात्रों के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
समय की बर्बादी: छात्र जीवन मे यदि कोई सबसे कीमती चीज होती है तो वह छात्रों का समय होता है। किन्तु इस बात से अनजान कुछ छात्र अपना अधिक समय सोशल मीडिया पर व्यतीत करते है। समय का यह दुरूपयोग छात्रों के भविष्य के लिए घातक साबित होता है। समय बचाने के लिए बनाए ये स्मार्ट फ़ोन आज समय बर्बाद करने के प्रमुख उपकरण बन गए है।
डिप्रेशन: आज सोशल मीडिया एक व्यसन की तरह हो गया है। छोटी उम्र के यह छात्र आसानी से इस व्यसन के आधीन हो जाते है। देर रात तक इंटरनेट और सोशल मीडिया पर समय बिताना , सर्फिंग, चैटिंग की वजह इनका बाहरी दुनिया से जैसे संपर्क टूट सा गया है। इस प्रकार की परिस्थियाँ छात्रों मे अवसाद और डिप्रेशन को जन्म देती है।
स्वास्थ्य पर असर: लंबे समय तक इंटरनेट और मोबाइल फोन पर काम करने से आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। मोबाइल डिवाइस की स्क्रीन और लैपटॉप की स्क्रीन से उत्पन्न होनी वाली रोशनी आंखों को शुष्क करती है। बिना ब्रेक के लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठना आपकी पीठ को कठोर बना सकता है, धीरे-धीरे, और तेजी से अगर ध्यान नहीं रखा गया तो दर्द और भी बढ़ सकता है।
निष्कर्ष :
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दोस्तों, परिवार और समाज को जोड़ने का अच्छा मंच है । वैश्वीकरण के इस दौर मे जहाँ दुनिया सिमटती जा रही है वहां सोशल मीडिया को अनदेखा नहीं किया है । किन्तु हमे इसका ध्यान रखना है की सोशल मीडिया का सीमित और उचित इस्तेमाल रहे ।
छात्रों को यह समझना अवश्यक है की सोशल नेटवर्किंग साइट्स आभासी दुनिया बनाती हैं जो वास्तविकता से काफी भिन्न होती हैं । छात्रों को समझदारी से यह निश्चित करना चाहिए की वे सोशल मीडिया पर कितना समय बिताना चाहते हैं ।
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